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हम सब ने यह ठाना है| पंचायत में नारी नेतृत्व बढ़ाना है ||

एक अभियान चलाना है| प्रधानपति मुक्त पंचायत बनाना है ||

प्रधान-पति मुक्त पंचायत अभियान

 

हमारे संविधान ने सबको समान अधिकार(समानता का अधिकार अनु.  14-18) प्रदान किए है, परंतु समाज के कमजोर वर्गों को विकास की मुख्य धारा में लाने के लिए विशेष प्रावधान(जैसे महिलाओं एवं बच्चों के लिए विशेष उपबंध अनु.15(3)) भी किये गये है, उन्ही में एक महत्वपूर्ण कदम उठाकर 73 वें संविधान संशोधन 1993 के माध्यम से समाज के कमजोर वर्ग जैसे, अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग एवं महिलाओं को तीनों स्तरों की पंचायतों में अध्यक्ष एवं सदस्य पदों पर आरक्षण(अनु.243(D)(3))का प्रावधान किया गया है| इन संवैधानिक सुरक्षा उपायों के बावजूद पंचायत की निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों को उनकी शक्तियों और स्वायत्ता का उपयोग करने में मौजूदा सामाजिक मानदंडों और पारंपरिक प्रथाओ ने हमेशा से कमजोर करने का काम किया है,अगर हम महिलाओं के पदों पर निर्वाचित किए जाने की बात करे, तो उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव क्रमसः 2010 एवं 2015 में आरक्षित सीटों की तुलना में औसतन 40% महिलाएं  चुन कर आई भी, परंतु पंचायत में चुनकर के आईये महिलायें क्या अपने अधिकारों का प्रयोग कर पायी ? क्या स्वतंत्र रूप से निर्णय ले पायी? क्या उनका स्वयं का विकास हुआ? क्या 73 वें संविधान संशोधन के पीछे ऐसीमंशा थी? अगर उपरोक्त सभी प्रश्नों का उत्तर नहीं है | तो आगे क्या करना है ?

एक अभियान चलाना है| प्रधानपतिमुक्त पंचायत बनाना है||

हम सब ने यह ठाना है|पंचायत में महिला नेतृत्व बढ़ाना||

सक्रिय सहभागिता, विकास एवं सशक्तीकरण की दिशा में अभिनव प्रयास

हमारे समाज में महिलाओं के लिए समानता, हक एवं उनके अधिकार हमेशा से चर्चा/बहस का विषय रहा है और नीति नियामकों के साथ साथ अन्य हितधारकों ने समय समय पर इस दिशा में अपने अपने तरीके से प्रयास किए और अपेक्षित कदम उठाएऔर शायद इसी का परिणाम है, कि आज हर क्षेत्रों में महिलाएं तेजी से आगे बढ़ रही है परंतु यह सफलता पर्याप्त नहीं है | इस प्रकार के प्रयास निरंतर जारी रहने चाहिए|अगर शहरी क्षेत्र की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को देखे तो आज भी उनकी स्थिति में कोईविशेष बदलाव/सुधार नहीं आया है,और आज भी उनकी स्थिति दोयम दर्जे की है| ऐसा क्यों है ?इसके पीछे के कारणों पर गंभीर चिंतन एवं मनन के साथ ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है|जिससे की उनकी स्थिति में बदलाव आए|यह बदलाव तभी संभव होगा जब उनको नेतृत्व का समान अवसर मिले| हम सभी उनके नेतृत्व को स्वीकार करते हुए अपेक्षित सहयोग प्रदान करें |

 

इसी क्रम में सहभागी शिक्षण केंद्र, लखनऊ ने संवैधानिक परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए स्वैच्छिक संस्थाओं के साथ मिलकर आगामी पंचायत चुनाव में छदम उम्मीदवारी(प्रधान पति) को हतोत्साहित करने और महिला नेतृत्व को बढ़ावा देने के लिए इस अभियान की शुरुआत कर रहा है| जिसके अंतर्गत राज्य सरकार,राजनीतिक दल, मीडिया (प्रिन्ट, इलेक्ट्रॉनिक एवं सोशल मीडिया) शिक्षण संस्थान एवं नागर समाज संगठन(civil society organisation) के साथ साथ समाज के अलग-अलग घटकों के साथ मिलकर प्रधानपति/छद्म प्रतिनिधी मुक्त पंचायत की परिकल्पना को साकार करने की दिशा में कदम उठा रहा है| और हमें पूरा विस्वास है कि सभी वर्गों के सहयोग एवं अपेक्षित कदम से इस अभियान को अवश्य सफलता मिलेगी |

अपेक्षा एवं सहयोग

राजनीतिक दल –

  • ग्रामीण सामुदायिक महिला नेतृत्व को बढ़ावा दे|

  • प्रधानपति जैसी प्रचलित कु-व्यवस्था को हतोत्साहित करे|

  • स्वयं सहायता समूह की सक्षम महिलाओं को नेतृव के लिए प्रोत्साहित करे |

  • अपनी बैठकों में छदम उपस्थिति को बढ़ावा न देने का संकल्प ले |

मीडिया –

  • प्रधानपति जैसी प्रचलित कु-व्यवस्था को चर्चा का विषय बनाए|

  • सक्षम/सफल ग्रामीण महिला प्रधान नेतृत्व केस स्टडी को प्रकाशित/प्रचार प्रसार करे|

नागर समाज संगठन(Civil Society Organisation)-

  • अपने अपने हस्तक्षेपित क्षेत्रों में प्रधानपति जैसी प्रचलित कु-व्यवस्था को हतोत्साहित करने के लिए जागरूकता फैलाए|

  • सफल/सक्षम महिला नेतृत्व का प्रचार प्रसार करे|

  • सक्रिय महिला नेतृत्व को बढ़ावा दे|

  • स्वयं सहायता समूह की सक्षम महलाओं को आगे आने के लिए प्रोत्साहित करे|

राज्य सरकार-

  • सरकार द्वारा प्रधान पति व्यवस्था का पूर्णतः निषेध किया जाए अर्थात इस प्रकार की व्यवस्था को बैठकों में सख्ती से पालन कराया जाए|

  • इस प्रकार के प्रचलित व्यवस्था को रोकने के लिए संवैधानिकव्यवस्था/शासनदेशों का कठोरता से पालन कराया जाए|

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